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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

अध्याय 2 प्रारम्भिक जीवन

बाल गंगाधर तिलक का जन्म भारत के पश्चिमी समुद्री तट पर स्थित रत्नगिरि नामक स्थान में 23 जुलाई, 1856 को हुआ था। अन्य कई नामों की भांति 'रत्नगिरि' भी नाम मात्र से रत्नगिरि है, क्योंकि वस्तुतः यह देश के सबसे पिछड़े और गरीब भागों में से एक है। फिर भी पिछले 300 वर्षों में अनेक देशरत्नों को जन्म देकर इसने अपने नाम को सार्थक कर दिया है। और उन सब देशरत्नों में सबसे महान और सबसे मूल्यवान रत्न तिलक थे।

तिलक का जन्म जिन परिस्थितियों में हुआ, उनसे किसी को अनुमान नहीं हो सकता था कि उनका भविष्य इतना उज्जवल होगा। जिस साधारण-से मकान में उनका जन्म हुआ था, वह आज एक राष्ट्रीय स्मारक के रूप में सुरक्षित है। उनके पूर्वज चिखल गांव के खोत हुआ करते थे। इस पद को समाज में आदर तो प्राप्त था, किन्तु जीवन-यापन के लिए पर्याप्त पैसे न मिलते थे। बाल गंगाधर के पिता एक स्कूल में मास्टर थे और बाद में प्राइमरी स्कूलों के निरीक्षक हुए। उन्हीं से बाल गंगाधर को अंकगणित और संस्कृत के प्रति चाव पैदा हुआ। बाल गंगाधर का विवाह उन दिनों की प्रथा के अनुसार 16 वर्ष की अवस्था में पिता की मृत्यु से कुछ महीने पूर्व निकटवर्ती गांव के बात्र-परिवार की कन्या तापी से हुआ।

एक सनातनी परिवार में जन्म लेने के कारण, तिलक का बचपन प्राचीन परम्पराओं के पालन, कर्मकाण्ड की अनुरक्ति और विद्याध्ययन में बीता। वह जब 1० वर्ष के थे, तब उनके पिता की बदली पूना हो गई। यह भी एक सौभाग्य की बात थी, क्योंकि वहां उन्हें उत्तम अध्यापकों की देखरेख में अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ। सोलह वर्ष की अवस्था में उन्हेंने मैट्रिक परीक्षा पास की और डेक्कन कॉलेज में भर्ती हो गए। यहां पर उनके अगले पांच वर्ष बहुत निश्चिन्तता और सुख में बीते। प्रायः उनके जीवन का सबसे सुखी समय यही था। उस समय डेक्कन कॉलेज में वर्डस्वर्थ, शूट और छतरे जैसे विख्यात प्रोफेसर थे, किन्तु उनके लेक्चरों और नोटों पर निर्भर न रहकर, तिलक अपने स्वतंत्र एवं व्यापक अध्ययन पर स्वाध्यायपूर्वक अधिक विश्वास करते थे। एम० बी० चौबल्, ना० ग० चन्दावरकर, ग० श्री० खापर्डे, आर० एन० मुधोलकर और डी ए० खरे जैसे उनके बहुत-से सहपाठी थे, जिन्हें आगे चलकर जीवन में काफी ख्याति मिली। इन सभी में श्री तिलक की सबसे अधिक घनिष्ठता श्री गो० ग० आगरकर से थी, किन्तु आगे चलकर दोनों मित्र सार्वजनिक जीवन में परस्पर एक-दूसरे के कट्टर विरोधी बन गए।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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